नीतिका की उम्र 28 साल थी। वह और उसके पति आर्यन, दोनों अपनी पहली संतान को लेकर बहुत उत्साहित थे। उनकी शादी को चार साल हो चुके थे, और वे दोनों एक प्यारे से बच्चे का सपना देख रहे थे। लेकिन जब नीतिका पहली बार गर्भवती हुई, तो उनकी खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। गर्भावस्था के तीसरे महीने में ही उनका गर्भपात हो गया।

यह खबर सुनकर नीतिका टूट गई। उसे लगने लगा कि वह एक मां बनने के लायक नहीं है। आर्यन ने उसे समझाया, प्यार दिया, लेकिन उसकी आंखों में जो दर्द था, वह उसे रोज महसूस करता था। हर बार जब वह अपनी दोस्त या रिश्तेदार को बच्चे के साथ देखती, तो उसके दिल में चुभन होती।

दूसरी उम्मीद का आगमन

एक साल बाद, जब नीतिका ने दोबारा गर्भावस्था का पता लगाया, तो वह मिश्रित भावनाओं से भर गई। इस बार खुशी के साथ डर भी था। वह बार-बार यही सोचती, “क्या इस बार भी सब कुछ गलत हो जाएगा?”

आर्यन ने महसूस किया कि नीतिका का डर उसके मन को जकड़ रहा है। वह उसे बार-बार समझाता, “इस बार सब कुछ ठीक होगा। हमें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए।” लेकिन नीतिका का डर कम होने का नाम नहीं ले रहा था।

नीतिका की दोस्त की सीख

एक दिन उसकी बचपन की दोस्त श्रेया उससे मिलने आई। श्रेया को जब नीतिका की स्थिति का पता चला, तो उसने उसे अपनी कहानी सुनाई।

“तू जानती है नीतिका, मेरी पहली डिलीवरी कितनी मुश्किल थी? मेरे डॉक्टर ने कहा था कि मेरी दूसरी बार गर्भवती होने के मौके बहुत कम हैं। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैंने सोचा कि अगर मेरे मन में डर रहेगा, तो मेरा शरीर भी वैसा ही प्रतिक्रिया देगा। मैंने सकारात्मक सोचना शुरू किया और अपने बच्चे के आने की कल्पना की। और आज देख, मेरा बेटा पांच साल का है।”

श्रेया की बातों ने नीतिका को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने महसूस किया कि डर उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन रहा था।

खुद को सकारात्मक बनाने की कोशिश

उस रात नीतिका ने खुद से वादा किया कि वह अपने डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने देगी। उसने कुछ कदम उठाए:

  1. योग और ध्यान: उसने हर सुबह 15 मिनट का ध्यान करना शुरू किया। यह उसे मानसिक शांति देने लगा।
  2. प्रेरणादायक कहानियां पढ़ना: उसने उन महिलाओं की कहानियां पढ़ीं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी मां बनने का सपना पूरा किया।
  3. अपने बच्चे से बात करना: उसने अपने पेट पर हाथ रखकर अपने बच्चे से बात करना शुरू किया। वह कहती, “तू मेरे साथ है, और मैं तेरे लिए हर मुश्किल से लड़ूंगी।”
  4. सपोर्ट ग्रुप से जुड़ना: उसने अपने जैसी अन्य महिलाओं से बात करनी शुरू की, जो उसे समझ सकती थीं।

आर्यन की भूमिका

आर्यन ने भी नीतिका का पूरा साथ दिया। वह उसे रोज़ हंसाने की कोशिश करता और छोटी-छोटी खुशियां मनाने का बहाना ढूंढता। जब भी नीतिका डरी हुई महसूस करती, वह उसका ध्यान दूसरी चीजों की ओर मोड़ देता।

सकारात्मकता का नतीजा

समय धीरे-धीरे बीतता गया, और नौ महीने पूरे हो गए। नीतिका ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। जब उसने अपनी बेटी को पहली बार देखा, तो उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। यह आंसू खुशी, संतोष और उस डर से मुक्ति के थे, जो इतने महीनों तक उसे परेशान कर रहा था।

निष्कर्ष

इस अनुभव ने नीतिका को सिखाया कि डर सिर्फ एक भावना है, जिसे सकारात्मकता और हिम्मत से हराया जा सकता है। उसने सीखा कि हर मां के अंदर वह ताकत होती है, जो उसे किसी भी चुनौती से लड़ने की हिम्मत देती है।

यह कहानी उन सभी महिलाओं के लिए है, जो गर्भावस्था में किसी भी प्रकार के डर का सामना कर रही हैं। याद रखें, आप अकेली नहीं हैं। अपने सपने पर भरोसा रखें, अपने शरीर पर विश्वास करें, और हर स्थिति में सकारात्मक बने रहें। आपका बच्चा आपकी हिम्मत और प्यार का ही हिस्सा है। ❤️

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